अरावली बचाओ
अरावली है धरती की साँस,
रेगिस्तान में हरियाली की आस।
पर्वत नहीं, ये जीवन है,
प्रकृति का अनमोल आशीर्वाद पास।
यहीं से नदियाँ जन्म लेतीं,
यहीं से बादल राहें चुनते।
पेड़, पहाड़, पशु–पक्षी,
सब अरावली में सपने बुनते।
पर आज खामोश है इसकी पुकार,
खनन ने छीना इसका श्रृंगार।
काट दिए जंगल, तोड़ दिए पहाड़,
किससे कहे ये अपना दुख अपार?
अगर अरावली रोई तो,
सूख जाएगी धरती की गोद।
आएँगी आँधियाँ, बढ़ेगा ताप,
डगमगा जाएगा जीवन का बोध।
आओ मिलकर संकल्प करें,
इस धरोहर की रक्षा हम करें।
पेड़ लगाएँ, पहाड़ बचाएँ,
अरावली को फिर हरा-भरा करें।