बचपन और बड़ा होना Childhood and Growing Up
विशेषताएं:
इस अवस्था में बालकों में समस्या की अधिकता, कल्पना की अधिकता और सामाजिक अस्थिरता होती है जिसमें विरोधी प्रवृतियों का विकास होता है.
किशोरावस्था की अवधि कल्पनात्मक और भावनात्मक होती है.इस अवस्था में बालकों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है और वे भावी जीवन साथी की तलाश भी करते है.उत्तर किशोरावस्था में व्यवहार में स्थायित्व आने लगता है किशोरों में अनुशासन तथा सामाजिक नियंत्रण का भाव विकसित होने लगता है
इस अवस्था में समायोजन की क्षमता कम पायी जाती है.
प्रोढ़ावस्था:
21-60 वर्ष की अवस्था प्रोढ़ावस्था कहलाती है. यह गृहस्थ जीवन की अवस्था है जिसमें व्यक्ति को जीवन की वास्तविकता का बोध होता है और वास्तविक जीवन की अन्तःक्रियाएं होती है.
विशेषताएं:
इस अवस्था में व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्यों को पाने की कोशिश करता है.व्यक्ति आत्मनिर्भर होता है
व्यक्ति की प्रतिभा उभर कर सामने आती है
वृद्धावस्था: 60 वर्ष से जीवन के अंत समय तक की अवधि को वृद्धावस्था कहा जाता है
विशेषताएं:
यह ह्रास की अवस्था होती है, इस आयु में शारीरिक और मानसिक क्षमता का ह्रास होने लगता है.
स्मरण की कमजोरी, निर्णय की क्षमता में कमी, समायोजन का आभाव आदि इस अवस्था की विशेषताएं है.
इस अवस्था में व्यक्ति में अध्यात्मिक चिंतन की ओर बढ़ता है.
विकास और अधिगम में सम्बन्ध
अधिगम (learning) का विकास से सीधा सम्बन्ध है. जन्म से ही मनुष्य सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन पर्यंत सीखता रहता है. जैसे-जैसे आयु बढ़ती है मनुष्य अपने अनुभवों के साथ-साथ व्यवहारों में भी परिवर्तन और परिमार्जन करता है वस्तुतः यही अधिगम है इसे ही सीखना कहते हैं. मनुष्य अपने विकास की प्रत्येक अवस्था में कुछ न कुछ अवश्य सीखता है लेकिन प्रत्येक अवस्था में सीखने की गति एक सामान नहीं होती. शैशवास्था में बालक माता के स्तन से दूध पीना सीखता है, बोतल द्वारा दूध पिलाये जाने पर निपल मुहं में कैसे ले यह सीखता है, थोडा बड़े होने पर ध्वनी और प्रकश से प्रतिक्रिया करना सीखता है. इस प्रकार मनुष्य जैसे-जैसे बड़ा होता जाता जाता है अपनी जरूरतों और अनुभवों से सीखता चला जाता है.