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 सभ्यता एवं पुरातात्विक स्थल

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* विश्व की प्राचीनतम अरावली की कंदराओं में मानव आश्रय का प्रमाण सर्वप्रथम भू— वैज्ञानिक सी.ए. हैकट ने 1870 ई. में इन्द्रगढ़ बूंदी में खोज निकाला । * पाणिनी की अष्टाध्यायी में युनानी आक्रमण के समय शिवी

जनपद व उसकी राजधानी माध्यमिका का उल्लेख मिलता हैं। राजस्थान में आर्य सभ्यता के प्रमाण अनूपगढ़ (गंगानगर) तथा तरखानवाला डेरा (गंगानगर) खुदाई में प्राप्त मिट्टी के बर्तनों से मिलता हैं।

रामायण में राजस्थान के लिए मरूकान्तार शब्द का उल्लेख मिलता हैं।

कालीबंगा सभ्यता - हनुमानगढ़

( 2300 ई. पू. से 1750 ई. पू. तक)

* नदी - सरस्वती (वर्तमान - घग्घर ) * कांलीबंगा का शाब्दिक अर्थ काली चूड़ियाँ हैं

* सर्वप्रथम इसकी खोज 1951-52 ई. में अमलानन्द घोष द्वारा तथा उत्खनन वर्ष 1961-1969 में ब्रजवासी लाल (बी.वी. लाल) व बालकृष्ण थापर द्वारा की गयी।

* यह सैन्धव सभ्यता से भी प्राचीन अर्थात् 'प्राक हड़प्पा युगीन संस्कृति स्थल हैं। इसलिए इसे प्राक् हड़प्पा, हड़प्पा समकालीन, पश्च/ उत्तर हड़प्पा भी कहा जाता हैं।

यह विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं के समकक्ष हैं। ना में इसकी नगर योजना सिन्धु घाटी की नगर योजना के समान थी।

- यहाँ से खिलौना गाड़ी के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो महत्वपूर्ण हैं। • कालीबंगा अवशेष पर डाक टिकट भी जारी किया गया (1961ई. में)

* राजस्थान सरकार द्वारा यहां से प्राप्त पुरावशेषों के संरक्षण हेतु कालीबंगा संग्रहालय की स्थापना की गयी।

* कालीबंगा से सात अग्नि वेदिकाएं व हवन कुण्ड प्राप्त हैं।

* विश्व में जुते हुए खेतों के प्रमाण सर्वप्रथम कालीबंगा से ही प्राप्त हुए हैं।

* नगर दो भागों में में विभाजित था । * नगर में दोहरी प्राचीर के प्रमाण मिले।

* खेती व पशुपालन (मिश्रित कृषि) के प्रमाण मिले * यहां पर से मकानों से पानी निकालने के लिए लकड़ी की नालियों का प्रयोग किया जाता था

* विश्व में सर्वप्रथम भूकम्प के साक्ष्य यहाॅ से मिले हैं। * यहां से गेहूँ एवं जौ फसल की जानकारी मिलती हैं।

* यहां एक सिक्के पर महिला कुमारीदेवी का चित्र अंकित मिला, जिससे मातृसतात्मक व्यवस्था के प्रमाण मिलते है।

* यहां से अण्डाकार कब्र के अवशेष मिले हैं जिसे चिरायु कब

* यहां से स्वास्तिक चिह्न प्राप्त हुए हैं।

* कालीबंगा सभ्यता के समाज में पुरोहित का स्थान प्रमुख था। * इतिहासकार के.यू.आर. केनेडी के अनुसार इस सभ्यता का पतन संक्रामक रोग से हुआ। ( वैज्ञानिक विधि अनुसार प्राकृतिक प्रकोप)

* यह भारत का पहला पुरातात्विक स्थल है, जिसकी स्वतंत्रता के बाद सर्वप्रथम खोज हुई।

*प्रथम बार हाइड्रोस्फलीश रोग की जानकारी मिली।


आहड़ सभ्यता (उदयपुर)

* यह सभ्यता आहड़ (बेड) नदी के तट पर स्थित हैं।

* इसका स्थानीय नाम धूलकोट था।

10-11 वीं सदी में इसका नाम आघाटपुर या आघाट दुर्ग / आधटपुर मिलता है।

* आहड़ संस्कृति को बनास संस्कृति भी कहा जाता है। * आहड़ का प्राचीन नाम ताम्रवती नगरी था। जिसके कारण से ताम्र उपकरणों की प्राप्ति हुई । * इस सभ्यता का उत्खनन सर्वप्रथम 1953 ई. में अक्षय कीर्ति व्यास द्वारा करवाया गया तत्पश्चात् सन् 1956 ई. में रतनचन्द्र अग्रवाल तथा डॉ. एच. डी. सांकलिया द्वारा कराया गया।

यह लगभग 4000 वर्ष पुरानी प्रस्तर धातु युगीन या OTH -पाषाणयुगीन सभ्यता है।

* आहड़ लाल व काले मृदभाण्ड (Red & Birk Earthenware) वाली संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। S * वहाँ के लोग चावल से परिचित थे (कृषि से परिचित थे)

* यहां पर सार्वजनिक भोजन बनाने की व्यवस्था का उल्लेख मिला हैं। * यहां से हमें अन्नाज रखने के बड़े मृदभाण्ड भी मिले है।

* जिसे स्थानीय भाषा में "गोरे" एवं "कोठ" कहा जाता है। C * यहां से हमें मिट्टी से बनी वृषभ आकृति की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं, जिससे बनासियल बुल की संज्ञा दी गई।


बैराठ - जयपुर,

इस सभ्यता के स्थल बीजक की पहाड़ी भीमजी की डूंगरी तथा महोदव डूंगरी इत्यादि स्थानों से प्राप्त हुए हैं।

*1937 ई. में दयाराम साहनी ने बीजक की डूंगरी का उत्खनन किया परंतु पुनः खनन का कार्य कैलाश नाथ दीक्षित एवं नीलरत्न बनर्जी के निर्देशक में हुआ। इस दौरान मौर्यकालीन अशोक स्तम्भ, बौद्ध विहार आदि के ध्वशांवशेष प्राप्त हुए। यह महत्वपूर्ण बौद्ध केन्द्र था।

* इसका आधुनिक नाम बैराठ है, जो पहले विराटनगर कहलाता था।

विराट नगर प्राचीन मत्स्य प्रदेश की राजधानी रही है। * महाभारत काल में पाण्डवों ने वनवास का अंतिम वर्ष छदम (गुप्त) रूप से राजा विराट के पास बिताया था।

1837 ई. में कैप्टन बर्ट ने यहां मौर्य कालीन बाह्मी लिपी में उत्कीर्ण अशोक महान के भानु अभिलेख की खोज की।

* यहाँ पर अशोक महान की पंचमार्क अर्थात् आहत मुद्रा मिली।

* यूनानी शासक मिनांडर की इण्डोग्रीक (हिन्दयवन) मुद्रा मिली।


* हूण शासक तोरमाण व मिहिरकुल ने भी आक्रमण किया। * चीनी यात्री ह्वेनसांग ने यहां की यात्रा की थी। (634 ई.)


* यहां पर शुंग एवं कुषाण कालीन अवशेष प्राप्त हुए * इस संस्कृति के लोग धातु से परिचित थे। हैं।


* इस सभ्यता स्थल को अलवर का सिंहद्वार कहते हैं।


• भारत में सर्वप्रथम मंदिर के अवशेष यहीं से प्राप्त हुए हैं। * इस पुरातत्व स्थल को प्राचीन युग की चित्रशाला कहते हैं।


                 गणेश्वर (सीकर) (2800 ई.पू.)


* वर्तमान- खण्डेला गाँव, नीम का थाना (सीकर) कांतली नदी किनारे ।


* यह स्थल ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में प्राचीनतम हैं। * इसे भारत की ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी कहा जाता है।


इस सभ्यता स्थल का उत्खनन 1972-76 ई. में आर.सी. अग्रवाल एवं वी.एन.मिश्र के नेतृत्व में किया गया ।


इस सभ्यता के 99 प्रतिशत उपकरण तथा औजार ताम्बे के प्राप्त


हुए। यहां पर मकान पत्थरों से बनायें जाते थे तथा ईंटों का उपयोग नहीं किया जाता था।


* यहां पर कुल्हाड़े तीर भाले सुईयां, मछली पकड़ने के कांटे


आदि प्राप्त हुए है।


दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुऐं मिली (थाली, कटोरा,


गिलास, चम्मच, छोटी सुई)


• ताम्र आयुधों के साथ लघु पाषाण उपकरण मिले हैं, गणेश्वर से जो मुदपात्र प्राप्त हुए हैं, वे कृषिषवर्णी मृदपात्र कहलाते हैं। मृदपात्रों में प्याले, तश्तरियाँ व कूंडियाँ प्रमुख हैं ।


-: शिकार के साथ पशुपालन भी प्रारम्भ हो चुका था तथा इस


समय लोग


मृद


भांड कला में विशेष रूप से सिद्ध- हस्त थे।


                   गिलूण्ड - राजसमंद


: यह बनास नदी के तट पर स्थित हैं।


* इस सभ्यता का उत्खनन 1957-58 ई. में प्रो. ब्रजवासी लाल द्वारा किया गया।


- यहां ताम्र पाषाणयुगीन एवं बाद की सभ्यताओं के अवशेष प्राप्त हुए।


* यह संस्कृति स्थल हड़प्पा से भी प्राचीन है। * यहां के मकानों में पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया।


* यहां से प्राप्त काले एवं लाल रंग के बर्तन अलंकृत हैं।

         बागौर (भीलवाडा )

* यह कोठारी नदी के तट पर स्थित हैं, जो बनास की सहायक नदी हैं।


* यहां उत्खनन से सम्बन्धित स्थल "महासतियों का टीला" उम कहलाता है।


में


* बागोर से पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्स मिले हैं। * इसका उत्खनन 1967-69 वी. एन. मिश्र व डॉ. एल. एस. लैशनि


द्वारा किया गया।

बालाथल- (वल्लभनगर)


* यह सभ्यता बेड़च नदी के तट पर स्थित थी, तथा ताम्र पाषाण युगीन कालीन सभ्यता थी। इसकी खोज सर्वप्रथम सन् 1962-63 ई. में डॉ. वी.एन. मिश्र


द्वारा बनास संस्कृति सर्वेक्षण अभियान के तहत की गई


इसका उत्खनन सर्वप्रथम सन् 1993 ई. वी.एस. शिंदे, वी.एन. मिश्र, डॉ. देव कोठारी व डॉ. ललित पाण्डे द्वारा किया गया।


* इस स्थान पर लोहा गलाने की पांच भट्टियां प्राप्त हुई हैं


रंगमहल- (हनुमानगढ़)


* यह स्थल सरस्वती (घग्घर नदी के तट पर स्थित था। * इसका उत्खनन सन् 1952-54 ई. में श्रीमती डॉ. हन्नारिड के निर्देशन में ताम्रयुगीन सभ्यता स्थल स्वीडिश दल द्वारा किया


गया।


ओझियाना (भीलवाड़ा)


* यहां पर ताम्रयुगीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।


* यह स्थल खारी नदी के तट पर स्थित हैं। * बी. एन. मिश्र के नेतृत्व में सन् 2001 में यहां उत्खनन करवाया।


गया।


नगरी- (चित्तौड़)


इसका प्राचीन नाम माध्यमिका था, जो चित्तौड़ के पास बेडच


नदी के तट पर स्थित था। इस स्थल का उल्लेख प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान पाणिनी द्वारा किया


गया। • यहां सर्वप्रथम सन् 1904 ई. में डी. आर. भण्डारकर के नेतृत्व में


खुदाई की गयी। • यहां से शिवि जनपद के सिक्के प्राप्त हुए हैं तथा गुप्तकालीन


कला के अवशेष प्राप्त हुए है। * नगरी शिवि जनपद की राजधानी रही हैं।


जोधपुरा- (जयपुर)


* यह विराटनगर के पास साबी नदी के तट पर स्थित है। यह शुंग व कुषाण कालीन सभ्यता स्थल हैं।


रि


यहां पर पांच सांस्कृतिक कालों का बोध कराने वाले अवशेष


प्राप्त हुए हैं। * यहां से लगभग 2500 ई.पू. से 200 ई. तक अयस्क से लौहा प्राप्त करने की प्राचीनतम भट्टी मिली।


सुनारी (खेतड़ी-झुंझुन


यह कांतली नदी के तट पर स्थित लौहयुगीन सभ्यता का प्रमुख स्थल है।


यहां पर लौह अयस्क से लौहा धातु प्राप्त करने की तथा लौहे के उपकरण बनाने की प्राचीनतम भट्टियां प्राप्त हुई हैं। लौहे के अस्त्र-शस्त्र एवं बर्तन प्राप्त हुए हैं।


* यहां के निवासी चावल व मांस खाते थे तथा रथों का प्रयोग करते थे, जो घोड़ों द्वारा खींचे जाते थे ।


* यहां से एक लोहे का प्याला (कटोरा) प्राप्त हुआ हैं।


* यह ढील नदी पर अवस्थित है। * इसे प्राचीन भारत का "टाटानगर कहते हैं।

* इसका उत्खनन के. एन. पुरी के नेतृत्व में हुआ। (1938-40 ई.) * यहां पर मालव जनपद की मुद्रा तथा पूर्व गुप्तकालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं तथा लौह सामग्री के विशाल भण्डार भी


प्राप्त हुए हैं। * यहां से प्राचीन सिक्कों का भण्डार प्राप्त हुआ हैं।


नगर- (टोंक)


* यह स्थल टॉक के उनियारा कस्बे के पास स्थित हैं। * इसका प्राचीन नाम "मालव नगर" था।


यहां से गुप्तकालीन अवशेष, सिक्के व आहत मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं।


नोह - (भरतपुर)


यह रूपारेल नदी के तट पर स्थित हैं।


* यहां से पांच सांस्कृतिक युगों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर उत्खनन रतनचन्द्र अग्रवाल द्वारा सन् 1963-64 में किया गया।


12वीं सदी ई. पू. में यहां पर लोहे का प्रयोग किया जाता था। यहां मौर्यकालीन एवं कुषाणकालीन अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।


साथी- (बीकानेर)

इस स्थल की खोज अमलानन्द घोष द्वारा 1953 ई. में की गई। यह स्थल कालीबंगा प्रथम नाम से प्रसिद्ध हैं। यहां पर हड़प्पायुगीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं।


भीनमाल - (जालौर)

* यहां पर ईसा की प्रथम शताब्दी एवं गुप्तकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।

इस स्थल पर उत्खनन 1953 ई. में किया गया।

भीनमाल का प्राचीनकाल में नाम श्रीमाल था। : चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा इस नगर की यात्रा की गई।

: विद्वान ब्रह्मगुप्त, मण्डन, माघ, माहुक, धाइल्ल इसी नगर से

सम्बन्धित रहे हैं। यहां के मृदयात्रों पर विदेशी प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता हैं।


अन्य सभ्यताएँ

तिलवाड़ा (बाड़मेर) - यह लूनी नदी के तट पर स्थित हैं। यहां पर मध्य पाषाण युग के भी अवशेष प्राप्त हैं।

ईसवाल (उदयपुर)- वर्ष 2003 में इसका उत्खनन किया गया । यह लोहयुगीन सभ्यता स्थल हैं।

नलियासर (सांभर जयपुर ) यह चौहान पूर्व युगीन केन्द्र हैं। यहां गुप्तकालीन सिक्कों के भण्डार प्राप्त हुए।

कुराड़ा (परबतसर-नागौर) यहां पर 1934 ई. मे ताम्र सामग्री - प्राप्त हुई थी

दर (भरतपुर)- यहां पाषाणकालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

डडीकर (अलवर)- यहां से पांच से सात हजार वर्ष पूर्व के प्राचीन शैलचित्र प्राप्त हुए हैं।

* गरदड़ा (बूंदी)- यह छाजा नदी के तट पर स्थित है यहा से "बर्ड राइडिंग रॉक पेंटिंग प्राप्त हुई है।

जहाजपुरा (भीलवाड़ा)— यहां से महाभारत कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। 

मल्लाह (भरतपुर) - घना पक्षी विहार क्षेत्र में ताम्र हारपून तलवारें प्राप्त हुई हैं।

धौली मगरा (मावली तहसील, उदयपुर) - यहां आहड़ सभ्यता से सम्बन्धित अवशेष प्राप्त हुए हैं। प्रो. ललित पाण्डे द्वार यहां उत्खनन करवाया गया।


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