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प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

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 1.प्राग-ऐतिहासिक काल (पाषाणकाल ) -



 प्रदेश में आदि मानव द्वारा प्रयुक्त जो प्राचीनतम पाषाण उपलब्ध हैं, वे लगभग डेढ़ लाख वर्ष पुराने हैं इस भूखण्ड में मानव सभ्यता उससे भी पुरानी हो सकती है राजस्थान में मानव सभ्यता पुरा पाषाण, मध्य पाषाण तथा उत्तर पाषाण काल से होकर गुजरी। 


(अ) पुरा पाषाणकाल - इस युग के उपकरणों की खोज से लगभग 110 वर्ष पूर्व सी.ए. हैकर ने सर्वप्रथम अश्म पत्थर से बने हैण्डएक्स जयपुर एवं इन्दरगढ़ से खोज निकाले थे, जो भारतीय संग्रहालय कलकत्ता में उपलब्ध हैं। पुरापाषाण कालीन मानव का आहार शिकार से प्राप्त वन्य पशु प्राकृतिक रूप से प्राप्त कन्द, मूल, फल, पक्षी, मछली आदि थे। इस समय का मानव आग जलाना सीख चुका था लेकिन अभी C पहिये से अपरिचित था। नहीं हुआ था। गया था। व्यवसायों के आधार पर जाति व्यवस्था का सूत्रपात हो गया था।


2. आद्य ऐतिहासिक काल (ताम्र युग / कांस्य युग)- वर्तमान से 5 हजार वर्ष पूर्व आद्य ऐतिहासिक काल प्रारंभ हुआ।


इस काल में मनुष्य के लिखित प्रमाण मिले परन्तु उन्हें पढ़ा नहीं जा सकता। इस काल में प्राप्त लिपि (लिखावट) के अनेक नाम दिये गये जो इस प्रकार है -

1. बुस्ट्रोफीदन लिपि 2. भाव चित्रात्मक लिपि 3. संघव लिपि 4 सर्पाकार लिपि 5. गोमुत्रिका पद्धति

3. ऐतिहासिक काल (लोह युग)- वर्तमान से लगभग 3000 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ। इस काल में मनुष्य के लिखित प्रमाण मिले जिन्हें पढ़ा भी जा सकता। राजस्थान में नोह (भरतपुर), जोधपुरा (जयपुर) एवं सुनारी (झुंझुन्) प्रमुख है ये सभ्यताऐं लौह युगीन सभ्यता का हिस्सा है।


ब) मध्य पाषाणकाल :- मध्य काल लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व से आरंभ हुआ। इस समय तक भी मानव का पशुपालन तथा कृषि का ज्ञान (स) नव पाषाणकाल : उत्तर पाषाणकाल का आरंभ लगभग 5 हजार ईसा पूर्व से माना जाता है इस काल में पहले हाथ से और फिर चॉक बर्तन बनाये गये अर्थात् मानव पहिये से परिचित हो गया। इस काल में कपास की खेती भी होने लगी थी। समाज का वर्गीकरण आरंभ हो ।


ऐतिहासिक काल:-


1. वैदिक काल -इस काल के अनुसार सरस्वती और दृषद्वती के बीच के हिस्से को मनु ने ब्रह्मावर्त बताया हैं जो अति पवित्र एवं ज्ञानियों का क्षेत्र माना गया हैं । सरस्वती और दृषद्वती नदी घाटियों आयों की प्राचीन बस्तियों का शरण स्थली रही हैं। आगे उत्तर- पूर्व में कुरुक्षेत्र स्वर्ग के समान माना गया है । इसी काल में ऋग्वेद के सातवें मण्डल की रचना घग्घर नदी किनारे हुई । अनूपगढ़ तथा तरखानवाला डेरा से प्राप्त खुदाई से इस सभ्यता पर कुछ प्रकाश पड़ा है ।


2. महाभारत काल महाभारत काल के आने से पूर्व मानव बस्तियां सरस्वती तथा दृषद्वती क्षेत्र से हटकर पूर्व तथा दक्षिण का ओर खिसक आयी थी उसकाल में कुरू जांगला (बीकानेर) तथा मद्र जांगला (मलकान्तर, मारवाड़) के नाम से पुकारे जाने वाले क्षेत्र आज बीकानेर तथा जोधपुर के नाम से जाने जाते है। इस भाग के आस-पास का क्षेत्र सपादलक्ष कहलाता था कुरु मत्स्य तथा शूरसेन उस काल में बड़े राज्यों में से थे। अलवर राज्य का उत्तरी भाग कुरूदेश के दक्षिणी और पश्चिमी भाग मत्स्य देश के पूर्वी भाग शूरसेन के अंतर्गत था। भरतपुर तथा धौलपुर राज्य का अधिकांश भाग शूरसेन देश के अंतर्गत थे। शूरसेन देश की राजधानी मथुरा, मत्स्य की विराट तथा कुरु की इन्द्रप्रस्थ थी। महाभारत काल में शाल्व जाति की बस्तियों का उल्लेख मिलता है जो भीनमाल, सांचोर तथा सिरोही के आपपास थी। 3. जनपद काल संपूर्ण भारतवर्ष 16 महाजनपद में बाँटा हुआ था, जिसमें राजस्थान में मत्स्य जनपद (विराटनगर), कूरुजनपद (इन्द्रप्रस्थ-दिल्ली), शूरसेन जनपद (मथुरा) शामिल थे। इस युग में ब्राह्मण एवं बौद्ध धर्म का विकास हुआ जिसमें बैराठ (जयपुर) लालसोट (दौसा) पुष्कर (अजमेर) एवं कोलवी (झालावाड़) में बौद्ध धर्म प्रचलित था यौधेय (गंगानगर) एवं मालव जनपद (झालावाड़) में ब्राह्मण धर्म के अनुयायी। 4. मार्यकाल चन्द्रगुप्त मौर्य के समय से ही मौर्या की सत्ता इस क्षेत्र में फैल गयी। कोटा जिले के कणसावा गाँव से मिले शिलालेख से यह पता चलता है कि यहाँ मौर्य वंश के राजा धवल का राज्य था। चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण चित्रागंद मौर्य करवाया। परंतु कुमारपाल प्रबन्ध तथा अन्य जैन ग्रंथों से अनुमानित हैं कि चित्तौड़ का किला व चित्रांग तालाब मौर्य राजा चित्रांग का बनवाया हुआ चित्तौड़ से कुछ दूर मानसरोवर नामक तालाब पर राजा मान का, जो मौर्यवंशी माना जाता है वि.स. 770 का शिलालेख कर्नलटॉड को मिला, जिसमें माहेशवर, भीम, मोज और मान ये चार नाम क्रमशः दिये है। इन प्रमाणों से भौयों का राजस्थान में अधिकार और प्रभाव स्पष्ट होता है।


विदेशी जातियों का आक्रमण मौर्या का पतन हो जाने के बाद राजस्थान छोटे-छोटे गणों में बंट गया। इस कारण भारत भूमि पर विदेशी जातियों के आक्रमण बढ़ गये। यूनानी राजा मिनेण्डर ने 150 ई.पू. में मध्यामिका नगर (चित्तौड़गढ़) को अपने अधिकार में कर अपने राज्य की स्थापना यूनानी राजाओं के सिक्के सांभर झील के पास स्थित मीठे पानी की झील नलियासर से प्राप्त हुए हैं। उनके कुछ सिक्के बैराठ तथा नगरी से भी प्राप्त हुए हैं। ई.पू. प्रथम शताब्दी में पश्चिमी राजस्थान पर सिथियनों के आक्रमण आरंभ हुए ईसा से लगभग 90 वर्ष पहले राजस्थान से यूनानी शासक हुविष्क की मुद्रा प्राप्त हुई 150 ईस्वी के सुदर्शन झील अभिलेख से ज्ञात हुआ हैं कि कुषाणों का राज्य मरूप्रदेश से साबरमती के आस पास था शक, कुषाण और हूण आदि जातियाँ केवल सामरिक उद्देश्य एवं सत्ता के विस्तार के लिये भारत में आयी थी। उन्होंने बौद्ध धर्म को चोट तो पहुचाई किंतु उनके अपने पास ऐसा कोई धर्म या संप्रदाय नहीं था। जिसके प्रसार के लिये वे किसी अन्य तरह का प्रयास करती हैं इसलिए जैसे ही उनकी सत्ता समाप्त हुई वे भारतीय संस्कृति में रच बस गये और वे भारत की मूल राष्ट्रीय धारा में पूरी तरह घुल मिल गये।


गुप्तकाल - भारतीय इतिहास में 275 ई. से 550 ई. तक का काल गुप्तकाल के नाम से जाना जाता है राजस्थान में बयाना (भरतपुर) ये गुप्त शासकों की सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएं मिली है, जिनकी संख्या लगभग 2000 हैं इनमें सर्वाधिक सिक्के चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के हैं । बयाना के अलावा रैढ़ (टोंक) तथा अहेड़ा (अजमेर) से भी गुप्तकालीन मुद्राएं मिली हैं। गुप्त कालीन भवनों एवं मंदिरों के अवशेष जालोर जिले के भीनमाल तथा अन्य स्थानों पर देखें जा सकते हैं। पश्चिमी राजस्थान के नाग शासक भी गुप्तों के अधीन सामंत हो गये थे।


हूणों का आक्रमण— हूणों के आक्रमण गुप्त काल में आरंभ हुए। हुण राजा तोरमाण ने 503 ई. में गुप्तों से राजस्थान छीन लिया। तोरमण के पुत्र मिहिरकुल ने छठी सदी ईस्वी में राजस्थान पर मंयकर आक्रमण किया। विकसित हुए सभ्यता के सभी केन्द्र नष्ट कर दिये । इनमें बैराट और रंगमहल, बडोपल, पीर सुल्तान की थड़ी आदि स्थान प्रमुख है। हूण नरेश तोरमाण के पुत्र मिहिरकुल ने बाडौली में नागर शैली में शिव का प्रसिद्ध मंदिर बनवाया।


हर्षवर्धन- सातवीं शताब्दी में पुष्यभूति वंश का राजा हर्षवर्धन प्रतापी सम्राट हुआ। पुष्यभूति वंश को वर्धन वंश भी कहा जाता है। हर्ष के बारे में हमें दो ग्रंथों- बाणभट्ट द्वारा लिखित हर्ष चरित तथा ह्वेनसांग द्वारा रचित सी यू की से अधिक जानकारी मिलती हैं। चीनी लेखकों ने हर्ष को शीलादित्य कहकर पुकारा है हर्ष ने तीन नाटकों नागानन्द्र, रत्नावली और प्रियदर्शिका की रचना की। हर्ष के काल में राजपूताना चार भागों विभक्त था 1. गुर्जर 2. बधारी 3 बैराठ तथा 4 मथुरा । हर्ष काल के प्रान्तीय अधिकारी रायथन कहलाते थे । जबकि राजस्थान में यशोधर्मन के अधिकारी राजस्थानी कहलाते थे।


ऐसी मान्यता है कि 1800 ई. में सर्वप्रथम जॉर्ज थॉमस ने मौखिक रूप से इस प्रान्त के लिए राजपूताना' नाम का प्रयोग किया था। प्रसिद्ध इतिहास लेखक कर्नल जेम्स टॉड ने 1829 ई. अपनी पुस्तक एनॉल्स एण्ड एण्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान में इस राज्य का नाम रायथान अथवा 'राजस्थान' रखा।

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